मेरी कविताएँ, मेरी सोच, संगीत

संगीत बन जाओ तुम!

कब तक इस नकली हवा की पनाह में घुटोगे तुम?
आओ, सरसराती हवा में सुरों को पकड़ो तुम
संगीत बन जाओ तुम!
कब तक ट्रैफिक की ची-पों में झल्लाओगे तुम?
आओ, उस सुदूर झील की लहरों को सुनो तुम
संगीत बन जाओ तुम!
कब तक अपनी साँसों को रुपयों में बेचोगे तुम?
आओ, आज़ाद साँसों की ख्वाहिश सुनो तुम
संगीत बन जाओ तुम!
कब तक कानाफूसी से कानों को भर्राओगे तुम?
आओ, चंद पल शान्ति की मुरली बजाओ तुम
संगीत बन जाओ तुम!
कब तक उस चीखते डब्बे को सहोगे तुम?
आओ, बच्चों की हंसी में उस लय को पकड़ो तुम
संगीत बन जाओ तुम!
कब तक इन सिक्कों की खनखनाहट तले दबोगे तुम?
आओ, घुँघरू की आहट को पहचानो तुम
संगीत बन जाओ तुम!
कब तक टूटे हुए दिल के टुकड़ों का मातम बनाओगे तुम?
आओ, उस एक दिल की धड़कन में समां लो तुम
संगीत बन जाओ तुम!
कब तक जिन्दगी की ज़ंजीर में घिसोगे तुम?
आओ, अपनी आज़ादी में गाओ तुम
संगीत बन जाओ तुम!
संगीत बन जाओ तुम!
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10 thoughts on “संगीत बन जाओ तुम!

  1. कब तक ट्रैफिक की ची-पों में झल्लाओगे तुम?
    आओ, उस सुदूर झील की लहरों को सुनो तुम
    संगीत बन जाओ तुम!
    very nice

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  2. कब तक अपनी साँसों को रुपयों में बेचोगे तुम?
    आओ, आज़ाद साँसों की ख्वाहिश सुनो तुम
    संगीत बन जाओ तुम!खुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात….शानदार |

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